Monday, December 14, 2009

Money, Moha and Mahabharata-III

यह इसी श्रृंखला का तीसरा भाग है.  फिलहाल इसे आखरी भाग कह सकते हैं.  पर मूल रूप से महाभारत-विमर्श में चल रही यह दर्शन-शाला का ही हिस्सा है.  आगे चल कर बहुत से और ऐसे रूप आपके सामने आएंगे.


1 comment:

Sudhir Singh said...

Sir Yours Philosophy of money is interesting and it has shown a new way of thinking about money but I have found this debate as a Monologue.