जब सरकार चुनावी वादों में ठगती है
विदर्भ में होनेवाली 'योग्य' आत्महत्याओं पर वापस लौटते हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है, जो महाराष्ट्र सरकार को प्रति क्ंिवटल कपास के लिए 2700 रूपये देने के चुनावी वादे को निभाने से रोकता हो। पर उन्होंने सत्ता में आने के बाद क्या किया? मैं किसी एक सरकार पर अंगुली नहीं उठा रहा हूँ, मैं यह साफ कर दूँ कि पूरे देश में कश्षि की स्थिति काफी बुरी है, सभी सरकारें दोषी हैं। हर सरकार ने वादा खिलाफी की है, कोई भी राज्य बचा नहीं है। लेकिन इस खास मामले में, उन्होंने 2700 रूपये देने का वादा किया था पर इसे घटाकर 500 रूपये कर दिया। उन्होंने तथाकथित 'अग्रिम बोनस' भुगतान के रूप में दी जाने वाली 500 रूपये की योजना भी वापस ले ली।
इस तरह, किसानों से 1200 करोड़ रूपये वापस ले लिये गये। किसानों से 1200 करोड़ वापस लेने के बाद मुख्यमंत्री 1075 करोड़ के पैकेज की घोषणा करते हैं। 1075 करोड़ का पैकेज उन लोगों को दिया जाता है, जिनसे आपने 1200 करोड़ रूपये वापस ले लिये हैं।
अमेरिका-यूरोपीय यूनियन की सब्सिडियों ने कपास की कीमत को धरातल पर ला दिया
ठीक इसी समय अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने अपने कपास उत्पादकों को सब्सिडियों में डुबो दिया था। अमेरिका के कपास उत्पादक छोटे किसान नहीं हैं, वे कॉरपोरेसन की शक्ल में हैं। महाराष्ट्र में कितने कपास उत्पादक हैं? दसियों लाख हैं। अमेरिका में कितने किसान उत्पादक हैं? उनकी संख्या 20000 है। जब हम अपने किसानों से 1200 रूपये वापस लेते हैं, तब अमेरिका अपने कॉरपोरेसन्स को कितना दे रहा होता है ? 39 खरब डॉलर के कृषि मूल्य पर अमेरिका अपने कपास उत्पादकों को 47 खबर डॉलर की सब्सिडी देता है। इस सब्सिडी ने निचले स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय कपास बाजार को तहस-नहस कर दिया है। न्यूयार्क एकसचेंज में 1994-95 में कपास का मूल्य 90 से 100 सेंट पर बना रहता था, पर सब्सिडी के कारण यह घट कर 40 सेंट तक आ गया और उस दिन से पूरे विश्व में कपास के मूल्य में जबरदस्त कमी आई और भारी हानि के कारण किसानों की आत्महत्याएँ शुरू हुईं।
बुर्किना फासो में हजारों कपास उपजानेवालों ने आत्महत्या की। बुर्किना फासो व माली के राष्ट्रपतियों के न्यूयार्क टाइम्स को एक लेख जुलाई 2003 में लिखा, 'आपकी कृषि सब्सिडियाँ हमारा गला घोंट रही हैं'। हम ऐसी सब्सिडियों के विरुद्ध कोई कदम उठाने की स्थिति में नहीं हैं। कपास पर हमारे यहाँ 10 प्रतिशत ड्यूटी लगती है, लेकिन अगर आप मुंबई के टेक्सटाइल मैग्नेट हैं तो आपको यह 10 प्रतिशत चुकाने की भी जरूरत नहीं है। आपकों कपड़ों के निर्यात के नाम पर यह छूट मिलती है। इत्तेफाक से, अगर मैं मुंबई का एक टेक्सटाइल मैग्नेट हूँ तो मुझे कपास तो लगभग मुफ्त में ही मिल सकता है क्योंकि भारत में कपास काफी कम मूल्य पर बेचने वाले अमेरिकी कॉरपोरेसन 6 महीने के लिए उधार भी देने को तैयार हैं। इन 6 महीनों में मैं कपास से सूती कपड़ा बनाने के पूरे चक्र को पूरा कर सकता हूँ।
इस तरह मैं वास्तव में आपसे एक ब्याज रहित कर्ज प्राप्त कर रहा हूँ जिसे मैं 6 महीने में वापस करता हूँ और तबतक मैं भारी मुनाफा कमा लेता हूँ। यह सारा खेल लाखों लोंगो की जान की कीमत पर खेला जा रहा है।
मीडिया की भूमिका
मेरे लिए सबसे दुखद बात श्रीमती अल्वा की टिप्पणी है। एक पत्रकार के रूप में मैं आपका पूरी तरह समर्थन करता हूँ। पिछले साल हुई सबसे पीड़ादायक बात यह थी कि विदर्भ में आत्महत्याओं की रिपोर्टिंग 6 से भी कम राष्ट्रीय स्तर के पत्रकार कर रहे थे। जबकि लैक्मे इंडिया फैशन वीक को कवर करने के लिए 512 मान्यता प्राप्त पत्रकार आपस में भिड़े हुए थे। इस फैशन वीक कार्यक्रम में मॉडल सूती कपड़ों का प्रदर्शन कर रहे थे, जबकि नागपुर से मात्र डेढ़ घंटे के हवाई-सफर की दूरी पर स्थित विदर्भ क्षेत्र में कपास उपजाने वाले स्त्री-पुरूष आत्महत्याएँ कर रहे थे। इस विरोधाभाष पर एक न्यूज स्टोरी तैयार की जानी चाहिए थी, लेकिन एक या दो स्थानीय पत्रकारों को छोड़ किसी ने ऐसा नहीं किया ।
हमने प्रति क्ंिवटल अग्रिम बोनस के रूप में दी जाने वाली 500 रूपये की योजना तब वापस ली जब अमेरिक व यूरोपीय यूनियन के देश अपनी सब्सिडियाँ बढ़ा रहे थे। मैं पिछले साल अमेरिका गया था और अमेरिकी खेतों का दौरा किया था, साथ ही साथ कॉरपोरेट तरीके से संचालित डेयरियों में भी गया था। प्रति गाय पर दी जाने वाली सब्सिडी हमारे यहाँ राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के अंतर्गत दी जानेवाली मजदूरी के दोगुनी थी। प्रति गाय 3 डॉलर अर्थात लगभग 120 रूपये की सब्सिडी दी जाती है। यह आपके राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी कार्यक्रम के मजदूरी दर के दोगुनी है, जो कि 60 रूपये है। इस कारण मेरे दोस्त वर्धा के विजय जावांदिया ने यह बात बड़े ही खूबसूरत तरीक से एक टीवी साक्षात्कार में रखी। उनसे पूछा गया - जावांदिया साहब, एक भारतीय किसान का सपना क्या होता है? उन्होंने कहा कि भारतीय किसान का सपना यह है कि वो अमेरिकी गाय के रूप में पैदा ले क्योंकि उसे हमारे मुकाबले तीन गुना ज्यादा सहायता दी जा रही है। हमने किसानों को वैश्विक मूल्य में मची मार-काट के बीच फंसा दिया है और उनके पास जो भी सुरक्षा थी उसे हटा दिया है। हम अमेरिका-यूरोपीय यूनियन की सब्सिडियों का सामना करने की स्थिति में नहीं हैं।
बीज कंपनियों को ज्यादती करने की छूट दे दी गई है
हमने खेती को इस हद तक अनियमित कर दिया है कि अब बीजों की गुणवत्ता काफी कम हो गई है। इसे ऐसे समझें, जब आपने एक थैला बीज खरीदा तो थैले के पीछे यह लिखा हुआ मिलेगा कि 85 प्रतिशत अंकुरण की गारंटी। अब यह घट कर 60 प्रतिशत हो गया है। इसका मतलब यह है कि अगर कोई गाँव बीज की 10000 थैलियाँ खरीदता है तो वे लोग 10000 थैलियों की कीमत तो चुका रहे हैं लेकिन सिर्फ 6000 थैलियों ही वास्तव में पा रहे हैं। क्योंकि हमने कंपनियों के साथ समझौतापत्र पर हस्ताक्षर कर बीजों का स्तर घटा दिया है। जैसा कि मैंने पहले भी कहा था कि बीज उद्योग सॉटवेयर उद्योग से भी बड़ा है। कश्षि विश्वविद्यालयें विफल साबित हुई हैं। जैसा कि भारत सरकार खुद भी स्वीकार करती है कि एक्सटेंसन मशीनरी पूरी तरह रूग्ण स्थिति में है। जब अग्रिम बोनस योजना सरकार वापस ले रही थी, तब हमने सरकार से गुहार लगाई थी कि कृपया ऐसा न करें क्योंकि इससे आत्महत्याएँ दोगुनी हो जायेंगी। हम गलत थे। कुछ जगहों में यह तिगुनी हो गई। हमने प्रार्थना की थी- ऐसा न करें, ऐसा न करें, इसे वापस न लें, यह वास्तव में उन लोगों की जान लेगा जो काफी असुरक्षित स्थिति में हैं।
विदर्भ बनाम मुंबई
संयोग से महाराष्ट्र में 2005 के अंत में एक अनोखा सरकारी अध्यादेश लाया गया था। मैं नहीं जानता आपको इसके बारे में पता है कि नहीं। महाराष्ट्र में साधरणतः 14 से 15 घंटे तक बिजली क्रटती है, जबकि मुबंई के नामी इलाकों में 1 मिनट के लिए भी पावर कट नहीं होता। सुंदर लोगों को पावर कट के भरोसे कैसे छोड़ा जा सकता है। लेकिन सच्चाई यह है कि मंबई में 15 मिनट का पावर कट विदर्भ के सभी 11 जिलों को 2 घंटे तक बिजली दे सकता है। पर विदर्भ के बच्चों को परीक्षा के समय में भी राहत नहीं मिलती। इसी कारण 12वीं की परीक्षाओं में विदर्भ का प्रदर्शन हमेशा बुरा रहता है, फिर भी टॉपर विदर्भ से ही है। इस तरह अग्रिम बोनस योजना की वापसी के साथ एक नया सरकारी अध्यादेश भी आया। पर पावर कट में भी छूट दी जा रही है। क्या आप जानते हैं कि 2005 नये सरकारी अध्यादेश में क्या छूट दी गई है? पोस्टमॉर्टम केन्द्रों को पावर कट से छूट दी गई थी क्योंकि ढेर सारे शव यहां पोस्टमॉर्टम के लिए लाये जा रहे थे। उन्होंने पोस्टमॉर्टम केन्द्रों के साथ-साथ सुरक्षा बलों, पुलिस स्टेशनों, फायर ब्रिगेड आदि को भी पावर कट में छूट दी।