Sunday, January 22, 2012

तुम कहती थी


हर अनुभव झरता है
दोबारा जन्म लेता है  उसी पल
अनेकों रूपों में एक ही समय
एक ही है
जो गिरता है बूँद बन के
और उसी पल फटता है
अनंत स्वादों में,
महकों में,
चलते-भागते दृश्यों में
अनंत गीतों में
अनंत धुनों में
तेरे मेरे बीच हर बार
पुनर्जनम हों रहा है
हर बिंदु में
हर सतह में
हर आवाज़ में
तुमने सुनाई थी एक कहानी
और मुझ तक देखो
एक सृष्टि पहुंची है  
अरे नहीं!
ठहर ज़रा
यह भी एक नहीं है
अरे ! यह तो बहुत सारी हैं
मिट्टी के अंदर से मुझ तक भागी आ रही हैं
और यह देख
तैरती हुई मेरे चौगिर्दे से उड़ गयीं फिर
चार दिशायों में
तुम कहते थे कि बस एक ही फिल्म भेजी थी
और यह देखो
मुझ तक शब्द पहुंचे हैं अक्षरों में नाचते हुए
मुखडे हैं निहारते मुखडों कों
रंग फेंकते कई आसमानों के
तुमने कहा
बस एक आलाप भेजा है
और यह देखो झरना फूटा है
सूरजों का
रोशनियों की लड़ाइयां छिड पड़ी हैं
और अँधेरे मुस्करा रहे हैं
संदेसों की आमद हुई है भगवान बन कर
और तुम कहती थी बस शान्ति भेजी है
यहाँ तो कोहराम मचा है
तुम्हारे बच्चों का
अब आ भी जाओ
यह देखो अर्जुन ने कमीज फाड़ी है कर्ण की
और यह लो भीम द्रौपदी के पीछे भाग रहा है
और यह देखो कुन्ती दरवाज़े के बाहर ही झांकती है
स्कूल का काम छूट रहा है उसका
और यह तेरा मरजाना कृष्ण
युधिष्ठर की निक्कर उतार के दौड जाता है
और घर है कि कभी साफ़ ही नहीं रहता
कचरा रोज़ का रोज़ जमा हों जाता है
बाहर से कुछ आवाजें आई थीं
पर क्या करूं
तुझे सुनूं के तेरे बच्चों को !

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