क्या हमने कभी सोचा है कि दुर्योधन के जन्म और बचपन का उसके स्वाभाव से कोई रिश्ता है? थोड़ी देर के लिए उसके प्रति एक सहानुभूति पूर्ण रवैया रख कर अगर उसके बारे में सोचा जाये तो शायद उसे समझना आसान होगा. वो एक ऐसा बच्चा है जो एक गहरे तनाव में पैदा होता है. उसकी मां को गुस्सा है कि कुंती के बच्चे पहले हो गए और उसके नहीं. क्यूंकि राजपाट में पहले जन्मे बेटे को ही राजा बनाया जाता है. इस बेतहाशा को न झेलते हुए वो अपने ही गर्भ पर जोर से प्रहार करती है और एक मांस को लोथड़ा बाहर गिर जाता है जिससे बाद में दुर्योधन के साथ साथ बाकी कौरव भी पैदा होते हैं. बात फिलहाल दुर्योधन तक ही. क्या आप को यह कोई ऐसा बच्चा लगता है जिसे मां ने बड़े प्यार से पाला होगा. क्या वाकई उसकी मां ने उसे गोद में भर कर महीनों भर उसे छातियों के साथ लगा कर रखा होगा? क्या उसके बाप ध्रितराष्ट्र ने उसे गोद में बिठा के लम्बी कहानियां और लतीफे सुनाये होंगे? जो मां बाप उसे राजपाट का निश्चित वारिस मानना चाहते थे, वो बेचारा काल का मारा थोडा लेट हो गया और अब उसके मां बाप की असुरक्षा उसका उम्र भर के लिए बोझ बन गयी. जिसे मां की गोद नहीं मिली और बाप से आसमान छूने की कल्पना नहीं मिली, वो मां-बाप से दूर उन्हें खोजता रहा हस्तिनापुर में. मां बाप के लाड में जो अति करने की तृष्णा शांत होनी थी, वो हस्तिनापुर में पहुँच कर गुनाह में बदल गयी. मां बाप से प्यार, गाली और माफ़ी की रोज़ रोज़ सौगात अगर मिली होती तो शायद उसे छीनने की आदत न पड़ती और गुनाह की छूट न मिलती. बचपन में जैसे हम बच्चों को पालते हैं, उसकी परछाईं सदा के लिए रह जाती है. ज़िन्दगी के पहले मास्टर औरत और मर्द अगर फेल हो जायें, तो सारे स्कूल, कालेज और यूनिवर्सिटी मिल कर भी कुछ नहीं कर सकते.
1 comment:
Quite inspiring Sir. Really it is the root cause of the failure of my our Education system.
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